मन दुख और विवशता के विरोध में ही संतुष्टि, प्रसन्नता का अनुभव कर सकता है। यह मन का बंधन है, प्रोग्राम है।प्रसन्नता, मानसिक आराम एक तरफ़ा अनुभव नहीं है| यह विवशता, बेआरामी, तनाव के विरोध में ही अनुभव होता है| जब आप देखते हैं कि इस बंधन को समाप्त करने का कोई तरीका नहीं है, मूल ऊर्जा आपको छू लेती है| आप स्वचालित धरातल पर हैं|
आप संतुष्ट या स्थिर आराम की अवस्था में नहीं रह सकते| कोई कमी,कोई आवश्यकता, कोई असुरक्षा आपके सामने आ जाएगी| जीवन कोई परिभाषित या सीमित प्रक्रिया नहीं है| जब आप यह देख लेते हैं (कि आप स्थिर आराम या स्थिर प्रसन्नता की अवस्था में नहीं रह सकते-आपको जीवन ऊर्जा छू लेती है| अब हर पल एक प्रयोग की तरह सामने आता है| और इस प्रक्रिया का कोई संतुष्टिपूर्ण या आरामदायक अंत नहीं है|
जब आपको, जो हो रहा है या जो आपको परेशान कर रहा है, उसका कोई बुद्धिसंगत, तर्कसंगत, संतोषजनक उत्तर नहीं पाते हो-तो आप भगवान के विचार या किसी और सिद्धांत को अंतिम मानकर, उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हो| यह मन के लिये आरामदायक है| क्या मन को इतना सक्रिय किया जा सकता है कि वो इस आराम को नकार दे| यह सक्रियता आपको, ‘जो है’ उसके सामने ला खडा़ कर देती है| मन एक परिवर्तित आयाम में आ जाता है| आप स्वयं को अस्तित्व के पूरे क्षेत्र के रूप में देख लेते हैं|
तकनीकी, आर्थिक, वैज्ञानिक उन्नती के बावजूद जीवन दुर्घटना, बीमारी, नुकसान की समस्या से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है. म्रत्यु अभी भी एक रहस्य की तरह है, चाहे हमने इसकी अनिवार्यता को स्वीकार कर लिया है.(wordpress.com)
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